Murder or trap 15
वृंदा ने भरी हुई आँखों से रुद्र को देखा.. रुद्र के चेहरे पर आज प्यार नहीं दिख रहा था.. बल्कि दिख रहा था तो गुस्सा, नफरत, घृणा..!
वृंदा ज़मीन से उठ खड़ी हुई और आंसू पोंछते हुए कहा, "एसीपी रुद्र..!! आप जा सकते हैं.. दरवाज़ा उधर है..!!"
"नहीं..! मैं कहीं भी नहीं जाने वाला.. जब तक मुझे मेरे सभी सवालों के जवाब नहीं मिल जाते..!!" रुद्र ने गुस्से से कहा।
"मैं आपके किसी भी सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझती!!" वृंदा ने रुद्र की तरफ पीठ मोड़ते हुए कहा।
"ज़वाब तो तुम्हें देना ही होगा..! मेरी भावनाओं के साथ खेलने का.. मुझे धोखा देने का.. मुझसे झूठ बोलने का और..!!!" रुद्र ने वृंदा को बाजू से पकड़कर अपनी तरफ घुमाते हुए कहा।
"किस हक से ज़वाब चाहते हैं आप..!! प्यार.. वो तो आपने किया ही नहीं था..! भरोसा.. उसका तो शायद आप मतलब भी नहीं जानते!! पुलिस वाले आप रहे नहीं और अनजान लोगों को मैं कोई भी ज़वाब देना जरूरी नहीं समझती..!!" वृंदा ने रुद्र की आँखों में आंखे डालकर कहा।
"वृंदाऽऽऽ..!!" रुद्र गुस्से से चीखा।
"शांत हो जाइए मिस्टर रुद्र..! ये मेरा घर है और मेरे ही घर में आकर मैं आपको मुझपर ऐसे चिल्लाने नहीं दूंगी।" वृंदा ने अपने आंसू पोंछते हुए सख्त आवाज में कहा।
"मैं चाहूं तो अभी तुम्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुँचा सकता हूं!!" रुद्र अभी भी गुस्से में था।
"कोशिश कर के देख लीजिए..!! मैं हमेशा यहीं मिलूंगी!!" वृंदा ने रुद्र को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कहा।
रुद्र गुस्से से पैर पटकते हुए दरवाजे की तरफ चल दिया।
"काश..! तुमने एक बार मुझपर भरोसा करके प्यार से पूछा होता..!! वृंदा तुम्हारे लिए अपनी जान भी हंसते हंसते दे देती। क्या करें..!! औरतों के हिस्से में हमेशा अग्निपरीक्षा ही आती है।" वृंदा रुद्र के इस व्यवहार से टूट चुकी थी और घुटनों के बल फर्श पर गिर पड़ी और रोते हुए कहा।
वृंदा को ऐसे घुटनों पर गिरकर रोते देखकर रुद्र को ऐसा लगा कि उसके दिल पर किसी ने छुरियां चला दी हों।
रूद्र ने दौड़कर वृंदा को गले से लगा लिया।
"प्लीज यार..! तुम रोओ मत..! मैं तुम्हें रोते नहीं देख सकता! पर क्या करूं.. जो मुझे पता चला है उसके बाद मैं अपना गुस्सा कंट्रोल नहीं कर पा रहा था??" रुद्र ने कहा।
रुद्र के गले लगाते ही वृंदा ने एक जोरदार धक्का देकर रुद्र को अपने से अलग किया और लंबी सांसे लेने लगी .. वृंदा रोते-रोते थोड़ा सा चुप हो गई थी। लेकिन अभी भी उसे हिचकियां आ रही थी।
रूद्र ने उठकर 1 गिलास पानी ला कर दिया और वृंदा ने बिना कुछ कहे पानी पी लिया। कुछ देर तक वहां पर शांति फैली रही।
"ऐसा आखिर क्या हो गया था?? जिसकी वजह से तुम्हें इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा? तुम्हें पता है अगर किसी को पता चलता है तो तुम्हें सजा भी हो सकती है? जो तुमने किया है.. उसके बाद तुम कानून की नजरों में गुनाहगार साबित हो चुकी हो।" रूद्र ने सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा।
"मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है.. जो कानून की किसी भी किताब के हिसाब से गलत हो। अपने आप के बचाव में कुछ करना कहीं से भी कानून का उल्लंघन करना नहीं होता।" वृंदा ने रूद्र की तरफ देखते हुए जवाब दिया।
"तो फिर उस सब के पीछे की वजह क्या थी..? तुमने वह सब क्यों किया..??" रूद्र का मन अभी भी वृंदा को दोषी नहीं मान रहा था। लेकिन उसका दिमाग किसी भी हालत में वृंदा को बेकसूर नहीं मान रहा था।
"तुम जानना चाहोगे.. उस सब के पीछे की वजह..?? क्या तुम समझोगे??" वृंदा की आँखों में ये कहते हुए आँसू आ गए थे।
"अगर तुम समझाओगी.. तो मैं क्यों नहीं समझूंगा??" रुद्र ने वृंदा के चेहरे पर आए आंसू पौंछते हुए बहुत ही प्यार से कहा।
"तो फिर ठीक है..! मैं उसके पीछे की सारी की सारी कहानी तुम्हें सुनाने के लिए तैयार हूं.. लेकिन तुम्हें भी मुझसे एक वादा करना होगा कि तुम एक पुलिस वाले की तरह नहीं बल्कि एक आम आदमी की तरह मेरी बात सुनोगे और उसको समझने की कोशिश करोगे।" वृंदा ने कहा।
"ठीक है.. मैं ऐसा ही करूंगा.. मैं प्रॉमिस करता हूं..!!" रूद्र ने वृंदा का हाथ थामते हुए कहा।
"ठीक है.. तो फिर सुनो..!!
वह एक बहुत ज्यादा खूबसूरत लड़की तो नहीं थी.. बहुत ही साधारण सी थी वो..लेकिन उसके सपने बहुत बड़े थे। आसमान में उड़ना चाहती थी.. जमीन पर दौड़ना चाहती थी.. लेकिन थक कर कहीं भी रुकना नहीं चाहती थी।
घर में सिर्फ पापा ही थे.. मां तो कब का उसको छोड़ कर बचपन में ही चली गई थी। लेकिन उसके पिता ने मां की कमी कभी महसूस नहीं होने दी.. पिता के प्यार के साथ-साथ माँ का दुलार भी दिया था।
जब स्कूल में थी तभी से सभी उसका मज़ाक बनाते थे। कभी उसके बहुत ही साधारण दिखने का, तो कभी उसके पढ़ाई में एवरेज स्टूडेंट होने का, तो कभी उसके मिडल क्लास होने का। शुरू शुरू में वो घर आकर बहुत रोती थी।
"पापा मैं सुन्दर क्यों नहीं हूँ..?? हमारे पास और लोगों के जैसे बहुत सारे पैसे क्यों नहीं है..?? मैं इन्टेलिजेन्ट क्यों नहीं हूं..?? और भी ना जाने कितने सवाल उसके बाल मन में उठते ही रहते थे.. लेकिन उनके ज़वाब उसे नहीं मिलते थे। इसी वजह से वो स्कूल जाने में आनाकानी करती थी और उसके पापा हमेशा ही प्यार से समझकर उसे तैयार करके भेज ही देते थे।
एक दिन वह बहुत ही ज्यादा रोते रोते घर आई। उस दिन उसके पापा किसी वजह से जल्दी घर आ गए थे.. इसीलिए उसके पापा को पता चला था कि क्यों वह हमेशा स्कूल नहीं जाना चाहती थी??
उसके पापा ने बहुत ही प्यार से उसके आंसू पोंछे और अपनी गोद में बिठाकर समझाया, "बेटा.. हर इंसान अपने आप में यूनिक होता है बस उसे अपनी यूनीकनैस समझनी पड़ती है और सभी को यह बताना पड़ता है कि उसकी खूबियां क्या है..!! फिर बाद में कोई भी उसके बाहरी रंग रूप को बहुत ज्यादा इंपॉर्टेंस नहीं देता। तुम्हें भी अगर अपने बाहरी व्यक्तित्व के बारे में चिंता करनी है तो अपनी खूबियों को भूल जाओ!!"
"नहीं पापा..!!"
"तुम्हें तो बाहर से सुंदर बनना है ना...तुम अपनी यूनीकनैस पर काम करना बंद कर दो..! अगर तुम चाहती हो कि सब तुम्हें जानें, पहचानें और तुम्हारे चेहरे की सुंदरता को छोड़कर तुम्हारे बारे में कोई और बात करें.. तो तुम्हें सभी को अपनी खुबियां दिखानी होंगी।" उस लड़की को उसके पापा की बात ठीक से समझ नहीं आई थी.. फिर भी उसके पापा के शब्द उसके दुखी मन पर मरहम लगाने के लिए काफी थे।
पापा ने आगे कहा, "चेहरे की सुंदरता कुछ ही दिन की मेहमान होती है.. बेटा..!! अगर तुम मन से सुंदर हो तो फिर हमेशा सुंदर रहती हो!! और सच में मन से तुम बहुत सुंदर हो..!!"
इस बात से वह लड़की बहुत ज्यादा खुश हो गई थी उसके पापा ने उसे आगे समझाना जारी रखा।
"बेटा पढ़ाई लिखाई तो एक अभ्यास है.. इसे कोई भी कर सकता है। अगर तुम ध्यान से करोगी तो संसार में तुमसे ज्यादा इंटेलिजेंट और कोई नहीं होगा। बस तुम्हें फालतू की सारी बातें छोड़कर अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान देना होगा। कौन तुम्हारे बारे में क्या कहता है उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता..??" उसके पापा ने कहा।
"सच में ऐसा हो सकता है पापा..!!" लड़की ने मासूमियत से पूछा।
"हाँ बेटा..!!" उस लड़की के पापा ने कहा।
अपने पापा की बात मानते हुए लड़की ने सब कुछ भूलकर अपने आपको पढ़ाई और बाकी सभी कामों में परफेक्ट बनाने के लिए कमर कस ली। कुछ ही सालों में उसने अपने आपको इस लायक बना लिया था कि अब तक जो भी लोग उसका मज़ाक बनाते थे.. अब उससे बात करने और उससे दोस्ती करना चाहते थे। अब वो इतनी बड़ी हो चुकी थी कि अब वो बिजनेस में मास्टर्स करने के लिए देश के बेस्ट बिजनेस कॉलेज में एडमिशन लिया था.. वो भी स्कॉलरशिप से!!
जब वो कॉलेज पहुँची.. तो वहाँ भी उसी सब का सामना करना पड़ा.. जो उसे स्कूल में झेलना पड़ा था.. लेकिन अब वो इतनी ज्यादा मजबूत हो चुकीं थी कि इन सबसे उसे फर्क नहीं पड़ता था।
रैगिंग से लेकर एनुअल डे प्रोग्राम तक हर जगह धीरे-धीरे उसी लड़की का नाम होने लगा था। उसके बिजनेस आइडियाज की वजह से उसे बेस्ट स्टूडेंट ऑफ ईयर का अवॉर्ड भी मिलने वाला था।
उसके आइडियाज की वजह से सबकी नज़रों में उसकी वैल्यू काफी बढ़ गई थी। प्रिन्सिपल ने उस लड़की को भरोसा दिलवाया था कि कैम्पस प्लेसमेंट में उसे बहुत अच्छे पैकेज पर जाॅब डेफिनेटली मिलेगी.. और ये हुआ भी जिस दिन कैम्पस में इंटरव्यू थे.. उस लड़की को सबसे ज्यादा पैकेज ऑफर हुआ था.. एक इंटरनेशनल कंपनी में..!!
इसी खुशखबरी के साथ वो अपने घर लौटी.. जैसे ही उसने अपने घर में ऐन्ट्री ली.. जोर से चिल्लाती हुई आई।
"पापा…!!! पापा..! कहाँ है आप..??"
"यहां हूं हॉल में..!! देखो कोई तुमसे मिलने के लिए आया है।" पापा ने बड़े ही प्यार से कहा।
वो इतनी ज्यादा खुश थी कि उसे समझ ही नहीं आया कुछ.. वो ऐसे ही दौड़ती हॉल में पहुंची।
वहाँ बैठा था एक स्मार्ट, हैंडसम, रिच लड़का.. जिसकी चाहत शायद हर लड़की करना चाहती होगी।
लेकिन उसके सपने कुछ और ही थे। वो अपने पापा को खुशियां देना चाहती थी, वो सब सपने पूरा करना चाहती थी.. जो उसकी परवरिश की वजह से उसके पापा के मन में ही कहीं दबे हुए थे। वो अपने सपनों को पंख देकर उनसे ऊँची उड़ान भरना चाहती थी।
लेकिन उसकी छोटी सी हंसती खेलती जिंदगी में तूफान बनकर आया… दीप..!!!
"ये दीप है..!! दीप राज..!! द होटल किंग..!!" पापा ने आने वाले का परिचय करवाया।
"नमस्ते..!!" उस लड़की ने हाथ जोड़ते हुए कहा और अपने पापा की तरफ सवालिया नज़रों से देखा।
"ये तुमसे शादी करना चाहते हैं..!!" पापा ने दीप के आने का कारण बताया।
"लेकिन पापा..!!"
"ये तुम्हें पसंद करते हैं.. और तुम्हारे सपनों, तुम्हारी खुशियों और तुम्हारे परिवार के साथ तुम्हें अपनाना चाहते हैं!!" पापा ने बताया।
"देखिए अनीता..!! मैंने आपको आज कॉलेज में देखा.. मुझे आपके जैसी ही समझदार, सुलझी हुई और काॅन्फिडेंट लड़की ही पसंद है। इन फैक्ट..!! मैंने जबसे आपको देखा है तभी से मैं आपसे शादी करना चाहता हूं..!!" दीप ने कहा।
"सॉरी..!! लेकिन मैं यह शादी नहीं कर सकती!!" इतना कहकर वो अंदर चली गई।
"आप रुकिए मैं अभी उससे बात करता हूं..!!" इतना कहकर अनीता के पापा उसके पीछे-पीछे अंदर चले गए।
"बेटा..! तुम्हें इससे अच्छा लड़का नहीं मिलेगा!! तुम हाँ कर दो इस शादी के लिए।" अनीता के पापा ने कहा।
"लेकिन पापा..! आप कुछ सोचो तो..?उसके जितना अमीर, पैसे वाला और स्मार्ट आदमी मुझ जैसी एक साधारण सी लड़की के साथ शादी करना क्यों चाहता है.. कोई तो कारण होगा..??" अनीता ने कहा।
"हां कारण है.. ना वो प्यार करता है तुमसे और इसीलिए तुमसे शादी भी करना चाहता है। मुझे उसमें कोई भी कमी नहीं दिखती। मैं दीप से वादा कर चुका हूं की अनीता की शादी दीप से ही होगी।" अनीता के पापा ने कहा।
"लेकिन पापा..!!"
"लेकिन वेकिन कुछ नहीं.. मैंने आज तक तुम्हारी हर बात मानी है.. आज तुम्हें मेरी यह बात माननी ही होगी। तुम्हें दीप से शादी करनी होगी और यही मेरा आखिरी फैसला है!!" अनीता के पापा ने इस लहजे में पहली बार अनीता से बात की थी।
अनीता बिना मन से शादी के लिए तैयार हो गई थी। अगले हफ्ते दीप ने कोर्ट मैरिज करने की तारीख तय कर दी थी। तय समय पर अनीता और उसके पापा कोर्ट पहुंच गए थे और 10 मिनट के बाद शादी करके कोर्ट से बाहर भी आ गए थे। अनीता के पापा शादी से बहुत खुश थे इसीलिए अनीता भी खुश होने की कोशिश कर रही थी। पता नहीं क्यों अनीता दीपक पर विश्वास नहीं कर पा रही थी।
दीप ने अनीता के पापा से विदा ली, "पापा अब हम चलते हैं..! मैं अनीता का बहुत अच्छे से ध्यान रखूंगा.. आप बिल्कुल भी चिंता मत करना।" ऐसा कह कर दीप ने अनीता के पापा के पैर छुए।
अनीता भी अपने पापा के गले लग गई… अनीता के पापा ने समझाते हुए कहा, "अनीता बेटा.. ! अब दीप का घर ही तेरा घर है.. इसीलिए उस घर को हमेशा अपना घर मानना और दीप के घर वालों को अपने घर वाले!! जैसे तुम मुझे मान सम्मान और प्यार देती हो.. उसी तरह दीप के घर वालों को भी उचित मान-सम्मान और प्यार देना। छोटी मोटी खटपट हर घर में होती है.. उस पर ज्यादा ध्यान मत देना और पूरे मन से बड़ों की सेवा करना!!"
अनीता के पापा की इस नसीहत को सुनकर अनीता ने हां में गर्दन हिलाई। इससे पहले वह कभी भी अपने पापा से दूर नहीं रही थी.. इसीलिए आज अनीता की आंखों में बहुत ही ज्यादा आंसू थे। दीप ने आगे बढ़कर अनीता के आंसू पौंछे और उसके कंधे पर हाथ रख दिया।
दीप ने अनीता के पापा से कहा, "पापा.. आप बिल्कुल भी चिंता मत करें.. मैं हूं ना..! मेरे होते कोई भी परेशानी अनीता को छू भी नहीं सकती।" इतना कहने के बाद दीप ने अनीता को अपनी कार में बैठा दिया और खुद भी बैठकर अपने घर के लिए निकल गया।
अनीता का मायका एक छोटा सा गांव था और दीप का घर एक बहुत ही बड़े शहर में।
अनीता को लेकर जब दीप अपने घर पहुंचा तो सभी घरवालों ने दीप को किसी लड़की के साथ ऐसे शादी करके आया देख.. बहुत ही ज्यादा गुस्सा किया।
अनीता नई दुल्हन दरवाजे पर खड़ी थी पर किसी ने भी उसका स्वागत नहीं किया। काफी देर तक जब दोनों दरवाजे पर खड़े रहे और कोई भी उनके स्वागत के लिए नहीं आया। तब दीप ने अनीता का हाथ थामा और घर के अंदर प्रवेश किया
जैसे ही उन्होंने अपना पहला पग घर में रखा.. दीप की दादी जोर से चिल्लाई, "खबरदार..!! जो मेरे घर में किसी भी अनजान ने पैर रखा..??"
"अनजान नहीं है वह.. मेरी पत्नी है! मैंने शादी की है..इससे..!" दीप ने कहा।
"हम नहीं मानते इस तरह की किसी शादी को.. जहां ना तो घर वालों से इजाजत ली जाती है ना ही उनकी मर्जी पूछी जाती है।" दीप के दादा अधिराज जी ने कहा।
"लेकिन फिर भी आप एक ऐसी लड़की से शादी करके घर लाए हो.. जो ना तो शक़्ल वाली है.. ना पैसे वाली और ना ही इसका कोई क्लास है।" दीप की बहन कहाँ पीछे रहने वाली थी।
"रिद्धि भूलो मत ये भी हमारे परिवार का हिस्सा है!!" दीप ने थोड़ा गुस्से से कहा।
"अब यह हमारे परिवार का हिस्सा भले ही है.. इस घर में ये तुम्हारी पत्नी की हैसियत से रह सकती है। लेकिन इससे बोल दो.. यह हमसे कोई भी रिश्ता जोड़ने की कोशिश ना करें।" अंजू ने कहा।
दीप बिना कुछ बोले अनीता का हाथ पकड़कर अपने कमरे में ले गया। यह पूरा घटनाक्रम अनीता के लिए अप्रत्याशित था और उसे बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था यह सब हुआ क्या..?
कमरे में ले जाकर दीप ने अनीता को अपने बेड पर बिठाया.. खुद जमीन पर बैठ कर और अनीता के हाथ थाम कर कहा, "मैंने अपनी मर्जी से तुमसे शादी की है.. इसीलिए घरवाले थोड़े से नाराज है। लेकिन मैं अच्छे से जानता हूं कि तुम उन्हें जल्दी ही मना लोगी और मैं भी कोशिश करूंगा कि उन्हें जल्द से जल्द मना सकूं। लेकिन तुम दिल छोटा मत करना मैं तो हूं ही..! मैं रिश्ते को दिल से मानता भी हूं और इसकी इज्जत भी करता हूं। साथ ही साथ एक पति पत्नी के रिश्ते में सबसे जरूरी चीज होती है प्यार और विश्वास और यह दोनों की चीज है हमारे रिश्ते में और वो भी भरपूर!" ऐसा कहकर दीप ने अनीता को गले लगा लिया।
अनीता ने भी पूरे मन से इस रिश्ते को निभाने और इसे मजबूत बनाने की सोच ली थी। ये रात उनके लिए उनके मिलन और पवित्र प्रेम की साक्षी भी थी।
अगले ही दिन से अनीता ने सभी घर वालों को मनाने के लिए कमर कस ली थी। अनीता हर वह काम करती थी.. जिससे परिवार खुश रहे और वो सब कुछ भूल कर अनीता और दीप के रिश्ते को स्वीकार करें!!
लेकिन जितना आसान अनीता ने सोचा था उससे कहीं ज्यादा मुश्किल था यह सब करना। अनीता फिर भी हंसते मुस्कुराते सबके ताने सहने के लिए तैयार थी।
पहले ही दिन से वो सभी की नज़रों में खटकने लगी थी और तो और घर के सभी नौकर भी अनीता को अजीब नज़रों से देखते थे। लेकिन अनीता ने फालतू किसी की परवाह किए बिना सभी घरवालों की सेवा और उनका ध्यान रखना शुरू कर दिया था।
क्रमशः....
Seema Priyadarshini sahay
20-Jul-2022 07:01 PM
बेहतरीन भाग
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Punam verma
19-Jul-2022 04:34 PM
Very nice part mam
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Aalhadini
20-Jul-2022 12:30 AM
Thanks 😊 🙏
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